COPYRIGHT

शनिवार, 27 अगस्त 2011

मैं भी खुश हूँ की चलो सरकार ने अन्ना के १२ दिनों के अनसन के बाद उनकी बातें मान ली हैं, पर मन अभी भी चिंतित है-

अभी तो कुछ ही सीढ़ी  चढ़े हैं मंजिल है बड़ी दूर,
सत्ता के नसे में भारत के  नेता रहते हैं बड़े मगरूर ,
नेता अब चोटिल साँप की  तरह और भी जहरीले  हो जायंगे  
इसलिए सशक्त कानून की अभी भी आशा न करें भरपूर//
--------विवेक   

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

राहुल गाँधी & मनमोहन सिंह के यह कहने पर कि वे अनशन से चिंतित पर असंवैधानिक व्यवस्था को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं , से मेरा कहना है:-

किस संविधान में संसद में नोटों की गड्डी लहराने की धारा है,
संविधान तो लाख दफा तुम जैसे अपने ही रखवारों से  हारा है,
अन्ना  को लोकतंत्र पर खतरा बतलाने वाले खुद अपने  को देखें,
जनता की  आवाज दबाने की भी क्या संविधान में कोयी   धारा है// 
 -----विवेक

बुधवार, 24 अगस्त 2011

उठो राजघाट के गाँधी जागो देखो आज इस देश में क्या हो रहा?
तुम्हारे बंदरों को जनता के जागने पर न जाने ये क्या हो रहा?
पर सावधान जागने पर ये दाग तुम्हारे दामन में भी लगा सकते हैं,
तुम्हे भी समझ में न आयेगा तुम्हारे मुल्क में ये सब क्या हो रहा?
-------विवेक

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

बुखारी साहब के ज़हरीले तीर (इस्लाम देश और मात्रभूमि को नहीं मानता) के जवाब में-



असली मुस्लिम वो होता है जो असफाक सा होता है,
देश के लिए वन्देमातरम गाते हुए खाक सा होता है,
देश को मजहब के नाम पर बाँटना तो बहुत आसान है,
इससे घाटा  तो इंसान का  पर भला तो  हैवान का  होता है//
------------विवेक     

रविवार, 21 अगस्त 2011

कपिल सिब्बल, चिदंबरम & Team को समर्पित:

लोकतंत्र की परिभाषा को हम सबको बतलाने वालों,
अन्ना को लोकतंत्र पर भारी खतरा समझाने वालों,
अभी चंद दिवस ही गुजरे हैं इन  भीषण तूफानों के,
परिणाम बड़े ही भयंकर होंगे सत्ता के मद वालों//
-------विवेक

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

सदियों से रामलीला में राम ने रावण को मारा है,
असत्य हर युग में सत्य से भयंकर रूप से हारा है//
अन्ना चल चुके हैं तिहाड़ से रामलीला की ओर,
कुछ दिनों की अन्ना लीला का परिणाम होगा बड़ा जोर//
-----विवेक

बुधवार, 17 अगस्त 2011

PM का कहना है-संसद की सर्वोच्चता को चुनौती स्वीकार्य नहीं , तो हम सबका कहना है:-

चौंसठ वर्षों बाद अब इनको संसद की मर्यादा की  घड़ियाली याद आयी है,
इन सब चांडालों को अब मिलकर  लोकतंत्र की रक्षा की भी याद आयी है,
लोकतंत्र को लूटतंत्र बनाकर अत्याचार ढहा रखा भारत की भोली जनता पर,
जनता भोली तो है पर उसको भी अब अपने कर्तव्यों की याद आयी है//
-----विवेक

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

१६ अगस्त २०११ के ऐतिहासिक दिवस पर-


भारत का लोकतंत्र आज खुद पर फिर से नम आँखों से शर्मिंदा  है, 
अंग्रेज गए तो क्या उनके असली वंसज अब भी संसद में जिन्दा हैं,
गाँधी की अबकी हत्या कर दी उनके नाम पर अर्धसदी से शासन करने वालों ने,
सच्ची आजादी के सपनों में हर भारतवासी अब बस केवल जिन्दा है//
----'विवेक'

शनिवार, 23 जुलाई 2011

आजादी के महानायक चन्द्र शेखर आजाद के जन्म दिवस पर:-

स्वर्गलोक में शेखर के बाजू अब भी फड़क रहे होंगे,
बंदूकों में गोली भरकर खूनी आँसू छलक रहे होंगे,
अंग्रजों से बड़े लुटेरे  तो अब भी जनता को लूटें जी-जान से,
शायद अब इन पर बारिश हो गोली और तोपों की आसमान से// 
---------'विवेक'


रविवार, 5 जून 2011

हमको अपने पी.एम.से कुछ प्रश्नों के जवाब चाहिये
उनके गद्दार मंत्रियों के दुष्कर्मों का हिंसाब चाहिये//
जब कोई सन्यासी भारत का सौदा करने वालों के विरुद्ध आवाज उठाता है
तो फिर क्यों उसकी आवाज को रात में दफनाने का षडयंत्र रचाया जाता है//
भारत का यह लोकतंत्र तुम्हारा कोई पुस्तैनी माकन नहीं
भारत का संविधान तुम्हारे षड्यंत्री हुक्मों का गुलाम नहीं//
भाषण और सम्मेलन की आजादी तो हम सब का मौलिक अधिकार है
सन्यासी संग बैठी जनता पर तुमको डंडे बरसाने का क्या अधिकार है//
-------'विवेक'

मंगलवार, 31 मई 2011

डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के ७ वर्ष पूरे होने पर:-

सात साल हो गये हैं पूरे बैठे पी.एम.की कुर्सी पर
मन से हँसते आँखों से रोते गठबंधन की मजबूरी पर//

समझौतों पर दस्कत करते मेहमानों की अगुवाई करते
मैडम जी का आँचल थामे राहुल जी की तारीफें करते//

इस अवसर पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर मेरे मन में गहरी चोटें हैं वाणी में भारी क्रंदन है// 

मैं भारत की जनता के भावों का  संबोधन हूँ
उनके दुःख दर्दों की आवाजों का उद्दबोधन हूँ//

मैं शहीद की विधवाओं का आँसू हूँ, उनकी पीड़ा का गायक हूँ
मैं भूखे नंगे बच्चों की वाणी हूँ, उनके गहरे घावों का लेखक हूँ//

यह धरती है बलिदानों की वतन खातिर प्राण गवाने वालों की
आजादी खातिर जंगल में रह घासों की रोटी खाने वालों की//

भारत की जनता की यही पुकार, मैडम जी का आँचल छोड़ो
उठ जागो पी. एम. जी अबकी बार ,जनता के दुःख दर्दों को मोड़ो//

अपने स्वाभिमान को तुम पहचानो, पी. एम.की कुर्सी का लालच छोड़ो
अपने कर्तव्यों को तुम समझो, जनता के अरमानों को अब तुम जोड़ो//

अबकी कर दो ऐलान लाल किले के मंदिर से
न खेलें वो भारत के स्वाभिमान से जस्बातों से//

भारत अब अपने छमा कलस को तोड़ेगा
 मानें  तो अब उनकी आंखे भी फोड़ेगा//

कह दो अब अपने घर के भी जयचंदों से
उठ भागें वो अब चौंसर के मयखानों से//

महफ़िल सजेगी अब सेवा की चाहत वालों की
भारत माँ खातिर मर मिटने की चाहत वालों की//

सब के तन को कम से कम रोटी कपड़ा और मकान दिलाओ
गरीबों की संख्या के निर्धारण खातिर पैसे को यूँ  अब भगाओ//

भारत में न्याय का शासन अब फिर से बोले
भ्रस्टाचारी अब सलाखों के भीतर से ही बोले//

जब किसी देश का राजा ही कायर हो जाता है
तो देश विदेश में उसका परिहास उड़ाया जाता है//

जब राजा तन कर आदर्शों से शासन करता है
तो पूरी दुनिया में उसका जयकारा लगता है//

यदि तुम भारत के लोकतंत्र की सच्ची सेवा कर सकते हो
तो अगले सत्तर वर्षों तक भी कुर्सी पर बैठे रह सकते हो//

फिर इस मौके पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर भारत की सेवा और रक्षा का भी मन से वंदन है//

-----विवेक

बुधवार, 25 मई 2011

गरीबों की जनगड़ना के निर्णय पर

आजादी के बाद से ही लगते रहे गरीबी हटाओ के नारे
इससे होते रहे इन नेताओं और अफसरों  के वारे न्यारे//
फिर गरीबों की गिनती की साजिस की है पूरी तैयारी
पता नहीं कब हट पायेगी इस मुल्क  से गरीबी सारी //

----------विवेक

गुरुवार, 19 मई 2011

कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री व राज्यपाल को समर्पित एक मुक्तक:

राजनीति के घरानों में रंजिशों की जगह कहाँ
सियासत के दरवारों में दोस्ती  की वजह कहाँ
यारी व दुश्मनी तो इंसानों की फितरत में होता 
गिरगिट की फितरत वालों को ये सब मालूम कहाँ//
----------विवेक


शुक्रवार, 13 मई 2011

राहुल जैसे नेता किसानों के अधिकारों की रक्षा में मस्त हैं,
ये अगले चुनावों  में वोटों के चक्कर में पूरी तरह व्यस्त हैं//
ये यूँ ही किसानों की चिंता पिछले चौंसठ सालों से करते रहे,
किसान तब से अब तक रोटी, कपडे, ठिकाने की तलास में मरते रहे//
                                                                            
-------'विवेक'


रविवार, 8 मई 2011

Mother's day पर :

पश्चिम से बाजारवाद की ऐसी काली आँधी आयी,
माँ के प्रति समर्पण को एक दिन तक उड़ा लायी/
माँ को नहीं आस है मदर्स डे के महँगे  तोहफों की
माँ को जरुरत है तो केवल बच्चों के दो बोल की//


संसार में कुछ भी एक दिन में हो सकता है,
पर माँ को समर्पित केवल एक दिन नहीं हो सकता है/
माँ के समर्पण के लिए तो उम्र क्या सौ जन्म हैं कम,
उसके आशीषों से ही बच्चों की खुशियाँ कभी न हुयी कम//


-----'विवेक'

शुक्रवार, 6 मई 2011

ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है



आतंकी हमलों में बिछ जाती लाशें इनको न दिखती हैं,
इन हमलों में घायल मासूमों का खून इन्हें न दिखता है/
शायद इनके काले चश्मों के शीशों से यह सब छिप जाता है,
ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है//

माँ की उजड़ी कोखों की कीमत इनको क्या मालूम,
विधवा के कंगन सिंदूरों  की कीमत इनको क्या मालूम/
शायद सत्ता की कुर्सी की मदमस्ती में  सब जायज होता है,
ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है//

पापा की आस लगाते बच्चों के सो जाने से इनको क्या मतलब,
दूज, राखी वाले त्योहारों की खुशियों से भी इनको क्या मतलब/
शियासत  में तो केवल खूनी होली का ही जश्न मनाया जाता है,
ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है//

माँ सीता को हर वाटिका में बैठाने वाले रावण को भी राम ने मारा था,
पांचाली का चीरहरण करने वालों को भी कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में हरवाया था/
ये दिग्विजय जैसे नेता तो नित भारत माँ का चीर हरण करते रहते हैं,
फिर भी क्यों हम इनको बार- बार  संसद में चुनकर  भिजवाते रहते हैं //
-------विवेक





शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

२G घोटाले व Commonwealth घोटाले पर बनी जाँच संसदीय समतियों पर

चोरों ने चोरों को खोजन खातिर समिति दी बनाय
ना जाने बैठक में चर्चा भयी या छमिया नाचे जाय
अगले दिन अख़बारों ने छापा मिर्च मसाला तड़का डाल
चोर अभी भी खुल्ला घूमें, हम सबको  अबहू लूटे जाय//

-------'विवेक'
                                   
                                                                                                                                    

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

जनलोकपाल समिति के सदस्यों पर सत्तापक्ष के नेताओं द्वारा बार-बार आरोप लगाये जाने पर समर्पित एक मुक्तक

ये खेल रहे हैं  चौंसर  सजा के महफिल मयखाने पे
घूर रहे हैं ये अब भारत की सेवा  की चाहत वालों पे  
यदि अब भी हम घृतराष्ट्र सरीखे अंधे होकर बैठेंगे  
तो अबकी कृष्ण हसेंगे भारत की बर्बादी के मंजर पे//

-------'विवेक'

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

उच्च न्यायालय के भ्रष्ट न्यायाधीश Justic P D Dinakaran व अन्य भ्रष्ट न्यायाधीशों को समर्पित:

जिनको न्याय सुनाना है वो खुद दागी पाये जाते हैं
इस कलयुग में हंसों पर भी काले धब्बे पाये जाते हैं/
अब करें भरोसा कैसे इन न्याय के रखवारों  पर
अब शोषित जाएँ किसकी  ड्योडी और दरवारों पर/

-------'विवेक'


मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

PSLV-C16 के Launch पर:

PSLV-C16 के Launch की पूर्वसंध्या  पर:


दुखद निकट अतीत है, शंकाएँ भी प्रबल हैं
प्रश्न तो  आसान हैं, उत्तर कुछ  मुस्किल हैं/ 
भविष्य प्रतीक्षारत है इतिहासों को दोहराने को
झील किनारे यान खड़ा है परचम को लहराने को//
                                                                 
PSLV-C16 अभियान की  सफलता के पश्चात:


२०अप्रैल२०११, आशंकाएँ तो सबल थीं पर उम्मीदें भी प्रबल थीं
समुद्री तट था, झील का सुन्दर किनारा था, प्रकृति भी हर्षित थीं//
रिसोर्सेसेट २, यूथसेट, एक्ससेट भी उफनते थे गगन में लहराने को
फिर पीएसलवी सी१६  ने पूर्ण किया हम सबके असंख्य अरमानों को// 

-------'विवेक'
                                                                                   

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे जी--

अन्ना हजारे जी के भ्रस्टाचार के विरुद्ध अनसन पर  2 मुक्तकें

अन्ना जी ने दिया विराम असमंजस के मंजर का
हम सबको मार्ग मिला है गाँधी जी के अनसन का
भ्रस्टाचार मिटाने खातिर भारत की इस धरती से
आओ हम सब भी साथ धरें अन्ना जी के कदमों का //


ऊँजियारा हर दम अँधियारे पर छाया है 
सज्जनता की हर युग में अमृत काया है
इतिहास दोहरा रहा अब खुद को फिर से 
भ्रस्टाचार मिटाने अन्ना फिर से आया है//

दिग्विजय सिंह द्वारा अन्ना हजारे पर आरोप लगाये जाने पर:-
जिनको जेलों  में होना था वो संसद में घुस कर तन कर बैठे हैं
जिनको फाँसी मिलनी थी वो सत्पुरुषों पर दाग लगाते रहते  हैं//
देर भले ही कितनी हो जाये पर अंधेर नहीं हो पायेगी
भारत की जनता अब सच्चे लोगों के कदमों पे ही जायेगी//

-------'विवेक'
                                                                                                                                                        

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

विश्व कप क्रिकेट २०११ पर

फाइनल से पूर्व की एक मुक्तक :


एक ओर आस है तो दूजी प्यास
दशकों के सूखे का कर दो विनास

महासंग्राम की बज चुकी है नाद
कर लो विश्व कप अपने पास//



फाइनल में   विजय के पश्चात  की २ मुक्तकें :

अर्सों बाद विजय की सुहानी सुगंध आयी है
दिल में खुशियों की उफनती तरंग आयी है
है बहुत बहुत अभिनन्दन धोनी की सेना का
हे राष्ट्र  तुझको अब कप के अर्पण की बारी आयी है//


सतयुग में लंका से माता सीता लाये थे हम
कलयुग में लंका से कप जीत के लाये हैं हम
रहा इतिहास साक्षी सदा विजयगाथा  का हमारी
आओ खुशियों की लहरों में गोते लगायें हम //

-------'विवेक'



 


रविवार, 13 मार्च 2011

''आतंकी पर केस''

(यह कविता उस समय लिखी गयी थी जब अजमल कसाब पर न्यायालय में केस चलाने कि प्रक्रिया चल रही थी)


आज दिल धधक रहा है
सीने में भड़क रही ज्वालायें हैं
आंखे नम हैं
वाणी उगल रही अंगारे है //

                    चीख रही चिल्ला रही भारत की जर्जर न्यायवयस्था
                    रो रहे किस्मत पर अपनी संविधान के रचनाकार
                    कोस रहे खुद को बैठे स्वर्गलोक में
                    भारत पर मिटने वाले अमर शहीद //

माँग रहे दुवाएँ मौत की अपनी
अमर सैनिकों के परिवार
वाणी में शब्द नहीं
घुट रहे मरने की तैयारी में//

                     शर्म आती है इस लोकतंत्र की न्यायवयस्था पर
                     भ्रुकटी तन जाती है इस न्याय के रखवारों पर
                     हो जाते हैं पानी पानी इस न्यायतंत्र पर
                     करता है मन रंग दे बसंती बनने को// 

फट जाती है छाती सुनकर कि कसाब का केस चलेगा अब
मिल गया वकील उसको भी
मक्कारों गद्दारों की कमी नहीं देश में
एक और सामने आया है//

                   पढ़ा रहा पाठ वह हमें व्यवसाय धर्म का
                   भूल गया वह राष्ट्र धर्म
                   भूल गया वह माँ का कर्ज
                   हुआ तैयार पैरवी को//

रोती माँ भारती हम भी रोते हैं
रोते सैकड़ों परिवार जिनको इसने खाया
चीख चीख कर रुन्दन करते
भारत माँ के वीर जवान //

                 चला रहे हम केस उस आतंकी पर जिसने देस को सर्मशार किया
                अपनी बंदूकों से मासूमों को छलनीसार किया
                 की कोसिस जिसने देस में विद्धवंस मचाने की
                फैलाया जिसने देस में आतंकी साया//

खेला जिसने गंदा खूनी खेल 
किये अंग भंग जिसने निर्दोसों के
छीने जिसने पिता,पूत, पति, पत्नी, मासूम
किये जिसे ग्रेनेड, ए.के. सैतालिसों से प्रहार //

             किया जिसने प्रयत्न धोने को भारत माँ का गौरव
             ललकारा है जिसने हमको
             दी चुनौती जिसने हमको
             दरिन्दे जसे शब्द भी जिसको पड़ते कम//

क्या यह भारत की न्यायवयस्था की मजबूरी है?
या माज़रा  कुछ और ही हजूरी है?
क्या हम कायर हैं?
या नहीं भरोसा है अपनी सेनाओं पर?

                   क्या हम राम कृष्ण के वंसज नहीं?
                   या दित्य नहीं था यंहा का राजा?
                   क्या भूल गए हम स्वाभिमान का पाठ?
                   या भूल गए आत्मरक्षा की बात?

क्या नहीं पैदा करती माँ भारती अब
राणा, भगत जैसे लालों को
या नहीं जन्मते अब देश में
गाँधी,सुभाष जैसे वीर महान //

              किया संविधान का खूब दुरूपयोग सत्ता के रखवारों ने
              की मनमुनाफिक व्याख्याएँ इसकी टीकाकारों ने
              किया खूब इसका प्रयोग देश में लूट पाट मचाने में
              किया पूरा प्रयास इसका परिहास बनाने में//

किया इसका प्रयोग आरक्षण की आग जलाने में
खूब किया इसका प्रयोग अमीरों को न्याय दिलाने में
अँधाधुंध प्रयोग किया सत्ता की कुर्सी पाने में
किया इसका मनमुनाफिक प्रयोग गरीबों पर अत्याचार डहाने में//

               अक्सर पगार बढ़ती जिससे इनकी 
               खंडित खंडित होता देस जिस्से
               हत्यारे एम.पी. बनते जिस्से
               होता कायम जंगल राज यंहा पर जिस्से//

क्यों नहीं लगी अजमल को फाँसी अब तक?
क्यों छोड़ा आतंकी को कंधारों पे?
कहाँ गए संसद के हमलावर ?
क्या हुआ दिल्ली के मासूमों के हत्यारों का? 

                 है अनुच्छेद तो इसमें  संसोधन का भी
                 करते तुम प्रयोग जिसका निर्धन की खाल उतरवाने में
                 करते प्रयोग जिसका तुम जंगल के सत्यानासों में
                किया प्रयोग जिसका तुमने अपनों को भू बटवाने में//

क्यों नहीं करते संसोधन अब
नहीं जरुरत अब होगी आतंकी पर केस चलाने की
अंग-अंग कटा जायेगा उसका चौराहों पे
रोम रोम जलेगा उसका अब चौराहों पे//

               न चलेगा अब कोई केस आतंकी पर
               नहीं बचेगें वे अब तारीखों पे तारीखें 
               नहीं बचेगें दरिन्दे अब विद्धवंस मचाने को
               नहीं भेजे जायेंगे वे अब कंधारों पे//

भेज दो संदेसा अब पडोसी को
न करें कोशिस अब वे भारत में आतंक मचाने की
अब जाग गया है खून राणा भगत के लालों का
नहीं जरुरत है हमें अब आतंकी पे केस चलाने की//

-------'विवेक'

शनिवार, 12 मार्च 2011

सुनामी की विभीषिका पर ईश्वर से

जब बस्तियों में खुशियाँ तुम दे नहीं सकते तो क्यों बस्तियाँ मिटाते,
बिना किसी आहट के बरबादियों के जलजले मंज़र भी कुछ यों ही आते /
कल तक मना रहे थे सब हँस खेल के खुशियाँ जिंदगी की अपनी,
उन सबको क्या मालूम कि ये खुशियों कि आखिरी निशा है उनकी //  




कभी इंसानों ने मिटाने की जुर्रत की
कभी कुदरत ने बहाने की कोशिश की /
पर वतन जापान को ये मिटा सकीं
क्योंकि आदत है उनको उठ खड़े होने की //


ऐ इंसानों कुदरत के इसारों को तो देखो  
कुदरत के इसारों की भी कोई सीमा हो /   
हम कुदरत की दुनिया को इतना न झकझोरें
कि हमें मिटाने पे वो पूरी तरह मजबूर हो जाये //

-------'विवेक'