(यह कविता उस समय लिखी गयी थी जब अजमल कसाब पर न्यायालय में केस चलाने कि प्रक्रिया चल रही थी)
आज दिल धधक रहा है
सीने में भड़क रही ज्वालायें हैं
आंखे नम हैं
वाणी उगल रही अंगारे है //
चीख रही चिल्ला रही भारत की जर्जर न्यायवयस्था
रो रहे किस्मत पर अपनी संविधान के रचनाकार
कोस रहे खुद को बैठे स्वर्गलोक में
भारत पर मिटने वाले अमर शहीद //
माँग रहे दुवाएँ मौत की अपनी
अमर सैनिकों के परिवार
वाणी में शब्द नहीं
घुट रहे मरने की तैयारी में//
शर्म आती है इस लोकतंत्र की न्यायवयस्था पर
भ्रुकटी तन जाती है इस न्याय के रखवारों पर
हो जाते हैं पानी पानी इस न्यायतंत्र पर
करता है मन रंग दे बसंती बनने को//
फट जाती है छाती सुनकर कि कसाब का केस चलेगा अब
मिल गया वकील उसको भी
मक्कारों गद्दारों की कमी नहीं देश में
एक और सामने आया है//
पढ़ा रहा पाठ वह हमें व्यवसाय धर्म का
भूल गया वह राष्ट्र धर्म
भूल गया वह माँ का कर्ज
हुआ तैयार पैरवी को//
रोती माँ भारती हम भी रोते हैं
रोते सैकड़ों परिवार जिनको इसने खाया
चीख चीख कर रुन्दन करते
भारत माँ के वीर जवान //
चला रहे हम केस उस आतंकी पर जिसने देस को सर्मशार किया
अपनी बंदूकों से मासूमों को छलनीसार किया
की कोसिस जिसने देस में विद्धवंस मचाने की
फैलाया जिसने देस में आतंकी साया//
खेला जिसने गंदा खूनी खेल
किये अंग भंग जिसने निर्दोसों के
छीने जिसने पिता,पूत, पति, पत्नी, मासूम
किये जिसे ग्रेनेड, ए.के. सैतालिसों से प्रहार //
किया जिसने प्रयत्न धोने को भारत माँ का गौरव
ललकारा है जिसने हमको
दी चुनौती जिसने हमको
दरिन्दे जसे शब्द भी जिसको पड़ते कम//
क्या यह भारत की न्यायवयस्था की मजबूरी है?
या माज़रा कुछ और ही हजूरी है?
क्या हम कायर हैं?
या नहीं भरोसा है अपनी सेनाओं पर?
क्या हम राम कृष्ण के वंसज नहीं?
या दित्य नहीं था यंहा का राजा?
क्या भूल गए हम स्वाभिमान का पाठ?
या भूल गए आत्मरक्षा की बात?
क्या नहीं पैदा करती माँ भारती अब
राणा, भगत जैसे लालों को
या नहीं जन्मते अब देश में
गाँधी,सुभाष जैसे वीर महान //
किया संविधान का खूब दुरूपयोग सत्ता के रखवारों ने
की मनमुनाफिक व्याख्याएँ इसकी टीकाकारों ने
किया खूब इसका प्रयोग देश में लूट पाट मचाने में
किया पूरा प्रयास इसका परिहास बनाने में//
किया इसका प्रयोग आरक्षण की आग जलाने में
खूब किया इसका प्रयोग अमीरों को न्याय दिलाने में
अँधाधुंध प्रयोग किया सत्ता की कुर्सी पाने में
किया इसका मनमुनाफिक प्रयोग गरीबों पर अत्याचार डहाने में//
अक्सर पगार बढ़ती जिससे इनकी
खंडित खंडित होता देस जिस्से
हत्यारे एम.पी. बनते जिस्से
होता कायम जंगल राज यंहा पर जिस्से//
क्यों नहीं लगी अजमल को फाँसी अब तक?
क्यों छोड़ा आतंकी को कंधारों पे?
कहाँ गए संसद के हमलावर ?
क्या हुआ दिल्ली के मासूमों के हत्यारों का?
है अनुच्छेद तो इसमें संसोधन का भी
करते तुम प्रयोग जिसका निर्धन की खाल उतरवाने में
करते प्रयोग जिसका तुम जंगल के सत्यानासों में
किया प्रयोग जिसका तुमने अपनों को भू बटवाने में//
क्यों नहीं करते संसोधन अब
नहीं जरुरत अब होगी आतंकी पर केस चलाने की
अंग-अंग कटा जायेगा उसका चौराहों पे
रोम रोम जलेगा उसका अब चौराहों पे//
न चलेगा अब कोई केस आतंकी पर
नहीं बचेगें वे अब तारीखों पे तारीखें
नहीं बचेगें दरिन्दे अब विद्धवंस मचाने को
नहीं भेजे जायेंगे वे अब कंधारों पे//
भेज दो संदेसा अब पडोसी को
न करें कोशिस अब वे भारत में आतंक मचाने की
अब जाग गया है खून राणा भगत के लालों का
नहीं जरुरत है हमें अब आतंकी पे केस चलाने की//
-------'विवेक'
-------'विवेक'
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