सात साल हो गये हैं पूरे बैठे पी.एम.की कुर्सी पर
मन से हँसते आँखों से रोते गठबंधन की मजबूरी पर//
समझौतों पर दस्कत करते मेहमानों की अगुवाई करते
मैडम जी का आँचल थामे राहुल जी की तारीफें करते//
इस अवसर पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर मेरे मन में गहरी चोटें हैं वाणी में भारी क्रंदन है//
मैं भारत की जनता के भावों का संबोधन हूँ
उनके दुःख दर्दों की आवाजों का उद्दबोधन हूँ//
मैं शहीद की विधवाओं का आँसू हूँ, उनकी पीड़ा का गायक हूँ
मैं भूखे नंगे बच्चों की वाणी हूँ, उनके गहरे घावों का लेखक हूँ//
यह धरती है बलिदानों की वतन खातिर प्राण गवाने वालों की
आजादी खातिर जंगल में रह घासों की रोटी खाने वालों की//
भारत की जनता की यही पुकार, मैडम जी का आँचल छोड़ो
उठ जागो पी. एम. जी अबकी बार ,जनता के दुःख दर्दों को मोड़ो//
अपने स्वाभिमान को तुम पहचानो, पी. एम.की कुर्सी का लालच छोड़ो
अपने कर्तव्यों को तुम समझो, जनता के अरमानों को अब तुम जोड़ो//
अबकी कर दो ऐलान लाल किले के मंदिर से
न खेलें वो भारत के स्वाभिमान से जस्बातों से//
भारत अब अपने छमा कलस को तोड़ेगा
न मानें तो अब उनकी आंखे भी फोड़ेगा//
कह दो अब अपने घर के भी जयचंदों से
उठ भागें वो अब चौंसर के मयखानों से//
महफ़िल सजेगी अब सेवा की चाहत वालों की
भारत माँ खातिर मर मिटने की चाहत वालों की//
सब के तन को कम से कम रोटी कपड़ा और मकान दिलाओ
गरीबों की संख्या के निर्धारण खातिर पैसे को यूँ न अब भगाओ//
भारत में न्याय का शासन अब फिर से बोले
भ्रस्टाचारी अब सलाखों के भीतर से ही बोले//
जब किसी देश का राजा ही कायर हो जाता है
तो देश विदेश में उसका परिहास उड़ाया जाता है//
जब राजा तन कर आदर्शों से शासन करता है
तो पूरी दुनिया में उसका जयकारा लगता है//
यदि तुम भारत के लोकतंत्र की सच्ची सेवा कर सकते हो
तो अगले सत्तर वर्षों तक भी कुर्सी पर बैठे रह सकते हो//
फिर इस मौके पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर भारत की सेवा और रक्षा का भी मन से वंदन है//
-----विवेक