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गुरुवार, 28 मार्च 2013


तुम सबको अभयता की अमर संजीवनी शक्ति मिले
इसी लिये मैंने वैभवता के जीवन को हँस कर त्यागा है/
हर नागरिक को गरिमामय जीवन जीने का हक मिल जाये
इसी सोंच में भारत माँ का यह पुत्र रातों रात जागा है /
इतने दिन भूंखे रहने पर अंतडियों में पीड़ा तो होती है
फिर भी देश बनेगा इस सुर की वीड़ा तो अब बजती है/
परिवर्तन त्याग माँगता है, बलिदान माँगता है, तप माँगता है
इसीलिए सुख चैन न जाने कब से इसके जीवन से भागा है//

------‘विवेक’

मंगलवार, 26 मार्च 2013

हे प्रभु, होलिका के वंशजों का पूर्ण नाश हो
परमात्मा, जीवन में सबके प्रह्लाद सा प्रकाश हो
ईश्वर, हर साँस में खुशियों का पावन एहसास हो
विधाता, हर दिन जीवन में होली का उल्लास हो//
------विवेक

शनिवार, 23 मार्च 2013

------------अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को शब्द्सुमनों की श्रद्धांजलि......

झूल गये थे वो मतवाले फाँसी के फंदे पर भारत माँ के शीश मुकुट चढ़वाने को
सत्ता की कुटिल कोसिसें हैं आजादी को नेहरु गाँधी के बलिदानों से मढ़वाने को
कब कहता हूँ मैं आजादी मिल जाती बिन गाँधी की सत्य अहिंसा के नारों के
पर आजादी न मिल पाती बिन बलिदानों के, इंकलाब के नारों के, हथियारों के// 

------------------ 'विवेक'

रविवार, 13 मई 2012

मदर्स डे पर:

पश्चिम से बाजारवाद की ऐसी काली आँधी आयी,
माँ के प्रति समर्पण को को मदर्स डे तक उड़ा लायी//
माँ के प्रति समर्पण के लिए तो उम्र क्या सौ जन्म हैं कम,
उसके आशीषों से ही जीवन में रहती हैं खुशियाँ हरदम//
जीवन की हर साँस, हर कतरे पर हैं जिसका कर्ज
उसकी अर्चना साधना ही है हर प्राणी का इक फर्ज़//
--------'विवेक' 

रविवार, 1 अप्रैल 2012

राम नवमी पर, राम का राजनीतीकरण करने वालों से:-

राम विषय नहीं हैं पाखंडी शोध का,
राम विषय हैं जीवन के उद्बोध का//
राम विषय नहीं हैं सत्ता के उपभोग का,
राम विषय हैं जीवन के प्रबोध का//

राम न मिलते मंदिर में, न माथे पर टीका चंदन से
राम मिलेंगे घोर तपस्या से, मन प्राणों से वंदन से//

जो कहते हैं राम विषय हैं इतिहासों के
कह दो उनसे राम विषय हैं विश्वासों के//
                                                        
-------विवेक


शनिवार, 27 अगस्त 2011

मैं भी खुश हूँ की चलो सरकार ने अन्ना के १२ दिनों के अनसन के बाद उनकी बातें मान ली हैं, पर मन अभी भी चिंतित है-

अभी तो कुछ ही सीढ़ी  चढ़े हैं मंजिल है बड़ी दूर,
सत्ता के नसे में भारत के  नेता रहते हैं बड़े मगरूर ,
नेता अब चोटिल साँप की  तरह और भी जहरीले  हो जायंगे  
इसलिए सशक्त कानून की अभी भी आशा न करें भरपूर//
--------विवेक   

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

राहुल गाँधी & मनमोहन सिंह के यह कहने पर कि वे अनशन से चिंतित पर असंवैधानिक व्यवस्था को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं , से मेरा कहना है:-

किस संविधान में संसद में नोटों की गड्डी लहराने की धारा है,
संविधान तो लाख दफा तुम जैसे अपने ही रखवारों से  हारा है,
अन्ना  को लोकतंत्र पर खतरा बतलाने वाले खुद अपने  को देखें,
जनता की  आवाज दबाने की भी क्या संविधान में कोयी   धारा है// 
 -----विवेक

बुधवार, 24 अगस्त 2011

उठो राजघाट के गाँधी जागो देखो आज इस देश में क्या हो रहा?
तुम्हारे बंदरों को जनता के जागने पर न जाने ये क्या हो रहा?
पर सावधान जागने पर ये दाग तुम्हारे दामन में भी लगा सकते हैं,
तुम्हे भी समझ में न आयेगा तुम्हारे मुल्क में ये सब क्या हो रहा?
-------विवेक

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

बुखारी साहब के ज़हरीले तीर (इस्लाम देश और मात्रभूमि को नहीं मानता) के जवाब में-



असली मुस्लिम वो होता है जो असफाक सा होता है,
देश के लिए वन्देमातरम गाते हुए खाक सा होता है,
देश को मजहब के नाम पर बाँटना तो बहुत आसान है,
इससे घाटा  तो इंसान का  पर भला तो  हैवान का  होता है//
------------विवेक     

रविवार, 21 अगस्त 2011

कपिल सिब्बल, चिदंबरम & Team को समर्पित:

लोकतंत्र की परिभाषा को हम सबको बतलाने वालों,
अन्ना को लोकतंत्र पर भारी खतरा समझाने वालों,
अभी चंद दिवस ही गुजरे हैं इन  भीषण तूफानों के,
परिणाम बड़े ही भयंकर होंगे सत्ता के मद वालों//
-------विवेक

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

सदियों से रामलीला में राम ने रावण को मारा है,
असत्य हर युग में सत्य से भयंकर रूप से हारा है//
अन्ना चल चुके हैं तिहाड़ से रामलीला की ओर,
कुछ दिनों की अन्ना लीला का परिणाम होगा बड़ा जोर//
-----विवेक

बुधवार, 17 अगस्त 2011

PM का कहना है-संसद की सर्वोच्चता को चुनौती स्वीकार्य नहीं , तो हम सबका कहना है:-

चौंसठ वर्षों बाद अब इनको संसद की मर्यादा की  घड़ियाली याद आयी है,
इन सब चांडालों को अब मिलकर  लोकतंत्र की रक्षा की भी याद आयी है,
लोकतंत्र को लूटतंत्र बनाकर अत्याचार ढहा रखा भारत की भोली जनता पर,
जनता भोली तो है पर उसको भी अब अपने कर्तव्यों की याद आयी है//
-----विवेक

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

१६ अगस्त २०११ के ऐतिहासिक दिवस पर-


भारत का लोकतंत्र आज खुद पर फिर से नम आँखों से शर्मिंदा  है, 
अंग्रेज गए तो क्या उनके असली वंसज अब भी संसद में जिन्दा हैं,
गाँधी की अबकी हत्या कर दी उनके नाम पर अर्धसदी से शासन करने वालों ने,
सच्ची आजादी के सपनों में हर भारतवासी अब बस केवल जिन्दा है//
----'विवेक'

शनिवार, 23 जुलाई 2011

आजादी के महानायक चन्द्र शेखर आजाद के जन्म दिवस पर:-

स्वर्गलोक में शेखर के बाजू अब भी फड़क रहे होंगे,
बंदूकों में गोली भरकर खूनी आँसू छलक रहे होंगे,
अंग्रजों से बड़े लुटेरे  तो अब भी जनता को लूटें जी-जान से,
शायद अब इन पर बारिश हो गोली और तोपों की आसमान से// 
---------'विवेक'


रविवार, 5 जून 2011

हमको अपने पी.एम.से कुछ प्रश्नों के जवाब चाहिये
उनके गद्दार मंत्रियों के दुष्कर्मों का हिंसाब चाहिये//
जब कोई सन्यासी भारत का सौदा करने वालों के विरुद्ध आवाज उठाता है
तो फिर क्यों उसकी आवाज को रात में दफनाने का षडयंत्र रचाया जाता है//
भारत का यह लोकतंत्र तुम्हारा कोई पुस्तैनी माकन नहीं
भारत का संविधान तुम्हारे षड्यंत्री हुक्मों का गुलाम नहीं//
भाषण और सम्मेलन की आजादी तो हम सब का मौलिक अधिकार है
सन्यासी संग बैठी जनता पर तुमको डंडे बरसाने का क्या अधिकार है//
-------'विवेक'

मंगलवार, 31 मई 2011

डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के ७ वर्ष पूरे होने पर:-

सात साल हो गये हैं पूरे बैठे पी.एम.की कुर्सी पर
मन से हँसते आँखों से रोते गठबंधन की मजबूरी पर//

समझौतों पर दस्कत करते मेहमानों की अगुवाई करते
मैडम जी का आँचल थामे राहुल जी की तारीफें करते//

इस अवसर पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर मेरे मन में गहरी चोटें हैं वाणी में भारी क्रंदन है// 

मैं भारत की जनता के भावों का  संबोधन हूँ
उनके दुःख दर्दों की आवाजों का उद्दबोधन हूँ//

मैं शहीद की विधवाओं का आँसू हूँ, उनकी पीड़ा का गायक हूँ
मैं भूखे नंगे बच्चों की वाणी हूँ, उनके गहरे घावों का लेखक हूँ//

यह धरती है बलिदानों की वतन खातिर प्राण गवाने वालों की
आजादी खातिर जंगल में रह घासों की रोटी खाने वालों की//

भारत की जनता की यही पुकार, मैडम जी का आँचल छोड़ो
उठ जागो पी. एम. जी अबकी बार ,जनता के दुःख दर्दों को मोड़ो//

अपने स्वाभिमान को तुम पहचानो, पी. एम.की कुर्सी का लालच छोड़ो
अपने कर्तव्यों को तुम समझो, जनता के अरमानों को अब तुम जोड़ो//

अबकी कर दो ऐलान लाल किले के मंदिर से
न खेलें वो भारत के स्वाभिमान से जस्बातों से//

भारत अब अपने छमा कलस को तोड़ेगा
 मानें  तो अब उनकी आंखे भी फोड़ेगा//

कह दो अब अपने घर के भी जयचंदों से
उठ भागें वो अब चौंसर के मयखानों से//

महफ़िल सजेगी अब सेवा की चाहत वालों की
भारत माँ खातिर मर मिटने की चाहत वालों की//

सब के तन को कम से कम रोटी कपड़ा और मकान दिलाओ
गरीबों की संख्या के निर्धारण खातिर पैसे को यूँ  अब भगाओ//

भारत में न्याय का शासन अब फिर से बोले
भ्रस्टाचारी अब सलाखों के भीतर से ही बोले//

जब किसी देश का राजा ही कायर हो जाता है
तो देश विदेश में उसका परिहास उड़ाया जाता है//

जब राजा तन कर आदर्शों से शासन करता है
तो पूरी दुनिया में उसका जयकारा लगता है//

यदि तुम भारत के लोकतंत्र की सच्ची सेवा कर सकते हो
तो अगले सत्तर वर्षों तक भी कुर्सी पर बैठे रह सकते हो//

फिर इस मौके पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर भारत की सेवा और रक्षा का भी मन से वंदन है//

-----विवेक

बुधवार, 25 मई 2011

गरीबों की जनगड़ना के निर्णय पर

आजादी के बाद से ही लगते रहे गरीबी हटाओ के नारे
इससे होते रहे इन नेताओं और अफसरों  के वारे न्यारे//
फिर गरीबों की गिनती की साजिस की है पूरी तैयारी
पता नहीं कब हट पायेगी इस मुल्क  से गरीबी सारी //

----------विवेक

गुरुवार, 19 मई 2011

कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री व राज्यपाल को समर्पित एक मुक्तक:

राजनीति के घरानों में रंजिशों की जगह कहाँ
सियासत के दरवारों में दोस्ती  की वजह कहाँ
यारी व दुश्मनी तो इंसानों की फितरत में होता 
गिरगिट की फितरत वालों को ये सब मालूम कहाँ//
----------विवेक


शुक्रवार, 13 मई 2011

राहुल जैसे नेता किसानों के अधिकारों की रक्षा में मस्त हैं,
ये अगले चुनावों  में वोटों के चक्कर में पूरी तरह व्यस्त हैं//
ये यूँ ही किसानों की चिंता पिछले चौंसठ सालों से करते रहे,
किसान तब से अब तक रोटी, कपडे, ठिकाने की तलास में मरते रहे//
                                                                            
-------'विवेक'


रविवार, 8 मई 2011

Mother's day पर :

पश्चिम से बाजारवाद की ऐसी काली आँधी आयी,
माँ के प्रति समर्पण को एक दिन तक उड़ा लायी/
माँ को नहीं आस है मदर्स डे के महँगे  तोहफों की
माँ को जरुरत है तो केवल बच्चों के दो बोल की//


संसार में कुछ भी एक दिन में हो सकता है,
पर माँ को समर्पित केवल एक दिन नहीं हो सकता है/
माँ के समर्पण के लिए तो उम्र क्या सौ जन्म हैं कम,
उसके आशीषों से ही बच्चों की खुशियाँ कभी न हुयी कम//


-----'विवेक'

शुक्रवार, 6 मई 2011

ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है



आतंकी हमलों में बिछ जाती लाशें इनको न दिखती हैं,
इन हमलों में घायल मासूमों का खून इन्हें न दिखता है/
शायद इनके काले चश्मों के शीशों से यह सब छिप जाता है,
ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है//

माँ की उजड़ी कोखों की कीमत इनको क्या मालूम,
विधवा के कंगन सिंदूरों  की कीमत इनको क्या मालूम/
शायद सत्ता की कुर्सी की मदमस्ती में  सब जायज होता है,
ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है//

पापा की आस लगाते बच्चों के सो जाने से इनको क्या मतलब,
दूज, राखी वाले त्योहारों की खुशियों से भी इनको क्या मतलब/
शियासत  में तो केवल खूनी होली का ही जश्न मनाया जाता है,
ओसामा का दफनाया जाना इनको बहुत जरुरी लगता है//

माँ सीता को हर वाटिका में बैठाने वाले रावण को भी राम ने मारा था,
पांचाली का चीरहरण करने वालों को भी कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में हरवाया था/
ये दिग्विजय जैसे नेता तो नित भारत माँ का चीर हरण करते रहते हैं,
फिर भी क्यों हम इनको बार- बार  संसद में चुनकर  भिजवाते रहते हैं //
-------विवेक





शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

२G घोटाले व Commonwealth घोटाले पर बनी जाँच संसदीय समतियों पर

चोरों ने चोरों को खोजन खातिर समिति दी बनाय
ना जाने बैठक में चर्चा भयी या छमिया नाचे जाय
अगले दिन अख़बारों ने छापा मिर्च मसाला तड़का डाल
चोर अभी भी खुल्ला घूमें, हम सबको  अबहू लूटे जाय//

-------'विवेक'