झूल गये थे वो मतवाले फाँसी के फंदे पर भारत माँ के शीश मुकुट चढ़वाने को
सत्ता की कुटिल कोसिसें हैं आजादी को नेहरु गाँधी के बलिदानों से मढ़वाने को
कब कहता हूँ मैं आजादी मिल जाती बिन गाँधी की सत्य अहिंसा के नारों के
पर आजादी न मिल पाती बिन बलिदानों के, इंकलाब के नारों के, हथियारों के//
------------------ 'विवेक'
सत्ता की कुटिल कोसिसें हैं आजादी को नेहरु गाँधी के बलिदानों से मढ़वाने को
कब कहता हूँ मैं आजादी मिल जाती बिन गाँधी की सत्य अहिंसा के नारों के
पर आजादी न मिल पाती बिन बलिदानों के, इंकलाब के नारों के, हथियारों के//
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