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मंगलवार, 31 मई 2011

डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के ७ वर्ष पूरे होने पर:-

सात साल हो गये हैं पूरे बैठे पी.एम.की कुर्सी पर
मन से हँसते आँखों से रोते गठबंधन की मजबूरी पर//

समझौतों पर दस्कत करते मेहमानों की अगुवाई करते
मैडम जी का आँचल थामे राहुल जी की तारीफें करते//

इस अवसर पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर मेरे मन में गहरी चोटें हैं वाणी में भारी क्रंदन है// 

मैं भारत की जनता के भावों का  संबोधन हूँ
उनके दुःख दर्दों की आवाजों का उद्दबोधन हूँ//

मैं शहीद की विधवाओं का आँसू हूँ, उनकी पीड़ा का गायक हूँ
मैं भूखे नंगे बच्चों की वाणी हूँ, उनके गहरे घावों का लेखक हूँ//

यह धरती है बलिदानों की वतन खातिर प्राण गवाने वालों की
आजादी खातिर जंगल में रह घासों की रोटी खाने वालों की//

भारत की जनता की यही पुकार, मैडम जी का आँचल छोड़ो
उठ जागो पी. एम. जी अबकी बार ,जनता के दुःख दर्दों को मोड़ो//

अपने स्वाभिमान को तुम पहचानो, पी. एम.की कुर्सी का लालच छोड़ो
अपने कर्तव्यों को तुम समझो, जनता के अरमानों को अब तुम जोड़ो//

अबकी कर दो ऐलान लाल किले के मंदिर से
न खेलें वो भारत के स्वाभिमान से जस्बातों से//

भारत अब अपने छमा कलस को तोड़ेगा
 मानें  तो अब उनकी आंखे भी फोड़ेगा//

कह दो अब अपने घर के भी जयचंदों से
उठ भागें वो अब चौंसर के मयखानों से//

महफ़िल सजेगी अब सेवा की चाहत वालों की
भारत माँ खातिर मर मिटने की चाहत वालों की//

सब के तन को कम से कम रोटी कपड़ा और मकान दिलाओ
गरीबों की संख्या के निर्धारण खातिर पैसे को यूँ  अब भगाओ//

भारत में न्याय का शासन अब फिर से बोले
भ्रस्टाचारी अब सलाखों के भीतर से ही बोले//

जब किसी देश का राजा ही कायर हो जाता है
तो देश विदेश में उसका परिहास उड़ाया जाता है//

जब राजा तन कर आदर्शों से शासन करता है
तो पूरी दुनिया में उसका जयकारा लगता है//

यदि तुम भारत के लोकतंत्र की सच्ची सेवा कर सकते हो
तो अगले सत्तर वर्षों तक भी कुर्सी पर बैठे रह सकते हो//

फिर इस मौके पर तुम्हारा बहुत बहुत अभिनन्दन है
पर भारत की सेवा और रक्षा का भी मन से वंदन है//

-----विवेक

2 टिप्‍पणियां:

  1. जब देश का राजा तिहाड़ में बंद हो जाता है.
    साथ में कलमाड़ी और कन्मोही को भी ले जाता है.
    तो देश की जनता का धैर्य जवाब दे जाता है.
    लेकिन जब एक
    जनता चालान काटने के बजाय इशारों में कुछ बातें करता है.
    दूसरी जनता खट से सौ का नोट थमा देता है.
    मेरा दिल फिर से टूट जाता है.
    मुख और मष्तिष्क का विभेद प्रकट हो जाता है.

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  2. यह पीड़ा देश के आम आदमी की पुकार है.... हुंकार है,,,
    अति उत्तम रचना...

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